हाँ, मैंने वो पल भी देखा है ......
वो उसके हाँ करने से ,
तुम्हारा, मुझे पागलों की तरह, चूमना ;
मेरे साथ झूमना ।
या, उसके रुसने पर ,
मुझे, रात भर पकड़ ,
खुदको, तुम्हारा कोसना ।
मैंने, वो सारे पलों को देखा है !
हाँ, मैंने, तेरे हर पल को देखा है ।
उसके, वो खास दिनों को ,
और खास बनाने ,
को, जो तू जगता था !
उससे, बातें करते-करते ,
जो, तू रातों को जागता था ।
या, काम से थका हरा ,
तू, उन्ही गंदे कपड़ों में ;
मुझ पर, सर रख सो जाया करता था ।
या, परीक्षा के पलों में ;
तू, रात भर न सोया करता था ।
मैंने, वो सारे पलों को देखा है !
हाँ, मैंने, तेरे हर पल को देखा है ।
वो, जो हस्ते-हस्ते,
तू, ठहाके लगाया करता था ;
या, सब से छुपकर ,
तू, रोया करता था ।
कभी डर कर,
मेरे पीछे, जो तू छिपता था !
कभी, अपनी शैतानी में,
मुझे, जो तू आगे करता था ।
मैंने, वो सारे पलों को देखा है !
हाँ, मैंने, तेरे हर पल को देखा है ।
हाँ, मैंने, तेरे हर पल को देखा है ।।
~~ FreelancerPoet
-------------------------------------+-----------
बेहतरीन रचना👌👌
Bohot khoob👍👍❣️
Personifying an inanimate object, putting feelings into it and making it feel as a human does, is hard but you composed it beautifully.
Kiske baare me likha hai?