एक होली ऐसी भी
जिसमे रंगो से कोई न भागे
हस्ते खेलते रंग उड़ाते
बढ़ते जाते शहर में आगे आगे
चारो और गुलाल
हाथों में पिचकारी
जैसे हम बचपन में खेलते थे
एक होली ऐसी भी
जिसकी चर्चा अगली कॉलोनी तक होती
रंगो से भरे कारवां में लोग जुड़ते जाते
दिनों बाद फिर एके बार
पूरी पल्टन हुई एक साथ
घरो को जाते, शरबत पीते
हवा में गुलाल उड़ाते उड़ाते
वो दिन की भी क्या बात
जब भी आए मुझको याद
एक ख्याल है मुझे सताती
क्या वापस ख़ेल पाएँगे ऐसी होली
राजनीति से जो हो परे
सवालो, अलोचना से दूर भागती
मासूम, प्यारी और रोचक!
एक होली ऐसी भी
जिसमे रंगो से कोई न भागे .
~ Snehal Deb (@hpsneh)
Day 15 #napowrimo