ना जा़हिर करू पर फ़िक्र मैं तुम्हारी हर वक़्त करता हूँ...
ना इज़हार करू पर मोहोब्बत मैं तुमसे बेइंतहा करता हूँ...
फा़सलें जो तेरे-मेरे दरमिंयां आज आ गए हैं,
रातों को जाग-जाग कर इन्हें आँसुओं से मिटाया करता हूँ...
मेरी अंधेंरीं जिंदगी में तू सुनहेरी धूप हैं...
वीरान-मायूस हालातों में तू महक़ती हूर हैं...
तेरे दीदार को आँखे़ं मेरी तरस रहीं हैं,
मेरी होकर भी क्यूँ मुझसे तू इतना दूर हैं.........
~ कायनात सुल्ताना कु़रेशी
Waah waah! Waah waah!