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कहते हैं की फन किसी आदमी को दो ही जानिब मुयस्सर होता है, या तो उस शख़्स पर यूँ ही खुदा की बहतेरी नेमत हो जाए या फिर उसे ज़िंदगी में इतने बला के तजुर्बे मिलें की उसमें ज़माने भर के गमों को समेट पाने लायक पुख्तगी आ जाए। यकीनन माशूद अपने नाम के मुताबिक ही नेमतों से नवाज़ा गया है मगर उसके लिखे अश'आरों में जिस किस्म की गहराई है उन्हें पढ़ कर, सुन कर, मैं ये पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ की इसके हिस्से में तजुर्बों की कोई कमी नहीं रही है। माशूद से मैं अपने कॉलेज के दिनों से मुखातिब हूँ। अलग अलग मौकों पर हमें एक मंच से पढ़ने के मौके मिले और तब ही से मैं उसकी लिखाई का सताइश-गर हूँ। बड़े ही पुर-सुकून लहज़े से ग़ज़ल पढ़ने वाले माशूद के लिखने का अंदाज भी उतना ही सलीके से भरा है। साथ ही साथ उसकी ग़ज़लों में एक और खूबसूरती है की उसके हर्फ किसी बंदिश में कैद नहीं है। इस क़िताब को पढ़कर आपको अंदाजा होगा की जहाँ एक तरफ़ बेहद संजीदा नज़्म लिखी हैं वहीं दूसरी ओर मोहब्बत के अशआर हैं। इस क़िताब की रोमानी गजलें तो आपकी तारीफ की हकदार हैं ही मगर सबसे ज्यादा मोहब्बत के काबिल इसमें लिखी नज्में हैं। मेरी समझ में इन नज्मों को मैं पीर की तफ़्तीश मानूँगा जिसमें की जिंदगी की परख़ शायरी के हुनर से की गई है- "सच तो ये है अजाबों की अलामत है, ये घने काले बादल, ये ही तो कयामत हैं।" मुझे बेहद खुशी है की इस क़िताब के जरिए पहली मर्तबा मेरे अज़ीज़ भाई को मौका मिला है आप तमाम लोगों तक पहुँचने का। मेरी दुआएँ हैं की ये मौके आप सब के प्यार से आगे सैंकड़ों बार आएँ और हिंदी-उर्दू के मोहब्बती पढ़ने वाले लोगों में माशूद का खूब एहतराम हो। दिली मुबारकबाद । - देवांग गौड़

Nazm-E-Azaad

225,00₹Cena
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