अनजान लगने लगा है आज मुझे, वतन मेरा,
ये कभी दरिंदे तो पैदा नही किया करति थी,
नजरिया आवाम का कभी भी ऐसा तो न था,
यहाँ औरते हर रोज डर-डर के मरती नहीं थी।
ये सरजमीं मूझे पराया लगने लगा,अचानक से,
देश ये मेरा कभी ऐसा तो नहीं था,सपने में भी,
गँगा-जमुनी तहजीब तो दिखता ही नही अब यहाँ,
इन शहरियों में कभी ऐसी दरिंदगी तो नही थी।
राम-राज्य कहा जाता था कभी मेरे मुल्क को,
पर हुकूमत में राम की इखलाकियात तो नही दिखती।
रावण की भी उसूलो का मान रख लेते ये अगर,
किसी औरत की इज्जत तो सरे आम ऐसे न बिकती।।
~Ujjal P Sarkar

Satya vachan..!